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क्रिकेट का ‘खेल’!

ekmulakat
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भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने अब भारतीयों की भावनाओं से ही खेलने का मन बना लिया है। एक तरफ हिन्दुस्तान पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जूझ रहा है, वहीं श्रीलंका में भारत-पाक क्रिकेट सीरीज होने जा रही है। ये सीरीज कई सवाल खड़े करती है। क्या दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड इतनी निर्धन हो गयी है कि वह 26/11 मुम्बई हमले के दोषी राष्ट्र के साथ भी खेलने को विवश है? क्या क्रिकेट राष्ट्र गौरव से बढ़ कर हैं?

इस सीरीज से बीसीसीआई भारत-पाक रिश्तों में सुधार का भरोसा दिला रही है।क्या इससे यह माना जाए कि अब कश्मीर में आतंकी घुसपैठ नही होगा?  सेना का कोई जवान शहीद नही होगा? पाकिस्तान मुम्बई हमले के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा? इससे पहले भी हिन्दुस्तान हर सम्भव पाक से रिश्ते सामान्य करने का लगातार प्रयास करता रहा है। शिमला, ताशकन्द समझौते इन्हीं का उदाहरण हैं। पिछले दशक में बस और ट्रेन भी चलायी गयी, लोकिन परिणाम वही है। जब-जब हमने दोस्ती की पहल की है, संसद, मुम्बई हमले तथा कारगिल युद्ध जैसे घाव ही मिलें हैं।बीसीसीआई का एक अन्य तर्क यह है कि खेलों को राजनीति से दुर रखना चाहिए।क्या खेल किसी राष्ट्र की प्रतिष्ठा से बढ़ कर हैं? अब तक तो यही माना जाता रहा है कि खेल राष्ट्र की गरिमा व सम्मान का प्रतीक हैं।

देश का आम नागरिक बीसीसीआई के इस फैसले से असहज महसूस कर रहा है।आखिर हम किस राष्ट्र की दोस्ती के लिए देश की मर्यादा तथा जनमानस की भावनाओं की कुर्बानी दे रहें है? पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने ओसामा से लेकर अलजवाहिरी और हक्कानी से लेकर हाफिज़ सईद तक सबको पाकिस्तान का हीरो बताया है।मुशर्रफ कश्मीर में आतंकवादी भेजे जाने और उन्हें पाकिस्तान से पूरी मदद का खुलासा भी कर चुके हैं। मुम्बई हमले के बाद खुद हमने साक्ष्यों की एक गठरी पाकिस्तान सहित दुनिया को मुहैया कराया था।

हम सब जानते हैं, फिर भी मजबूर हैं। पाक पर सीधे कार्रवाई नहीं करने की अनेक वजहें हो सकती हैं, लेकिन क्या इसका मतलब ये है कि हम सब कुछ भूलकर क्रिकेट खेलने लगें?  क्या ऐसा करके हम उन शहीदों का अपमान नहीं कर रहें हैं, जिन्होने देश के लिए अपना सब कुछ लुटा दिया? राजनीतिक दलों एंव राजनेताओं का देश प्रेम तो जग जाहिर है। बीसीसीआई भी राजनीतिज्ञों तथा पूँजीपतियों का प्रतीक बन कर रह गयी है। यही वजह है कि बीसीसीआई के पिछले कुछ सालों में लिए गये निर्णय राजनीतिक, व्यक्तिगत अथवा व्यवसायिक हितों की पूर्ति से अभिप्रेरित लगते हैं।

पाकिस्तान एंव पाक क्रिकेट बोर्ड को इस सीरीज की जरुरत है। आंतकवाद तथा आर्थिक कमजोरी से संघर्ष कर रहे देश के लिए धन एकत्रित करने का इससे बेहतर उपाय नही हो सकता। पाक इस सीरीज से मिला पैसा आंतकवादी गतिविधियों में खर्च करेगा। जरुरी है कि बीसीसीआई अपने फैसले पर पुनर्विचार करे। भारतीयों में आत्म-सम्मान तथा सेना का मनोबल बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है।

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