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नागरिकता का दोहरा मानदंड !

ekmulakat
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अभी पिछले दिनों ही पाक नागरिक अदनान सामी को भारत की नागरिकता प्रदान की गई। असहिष्णुता के मसले पर घिरी केंद्र सरकार को अपनी पीठ थपथपाने का सुनहरा अवसर भी मिल गया था। लेकिन यही सरकार हिन्दू शरणार्थियों की नागरिकता के मसले पर चुप्पी साधे हुई है। ऐसा नहीं है कि सरकार उनकी समस्यायों से परिचित नहीं है। फिर नागरिकता पर सरकार का दोहरा मानदंड क्यों है?  क्या उन हिन्दू शरणार्थियों के लिए दुनिया के सबसे अधिक हिन्दू जनसंख्या वाले देश में कोई स्थान नहीं है? क्या उनकी भावनाओं तथा अपेक्षाओं का कोई मोल नहीं है? ऐसा तब है जबकि देश के अनेक राज्य असंवैधानिक घुसपैठ से अति-प्रभावित हैं। असम और पश्चिम बंगाल इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। इन दोनों राज्यों में घुसपैठ का असर इतना खौफनाक है कि स्थानीय सभ्यताओं के विनष्ट होने का खतरा बढ़ गया है। साम्प्रदायिक झड़पें, हिंसक गतिविधियाँ व गोली-बारी इन राज्यों की पहचान बन गई है। आगामी वर्षों में इन्हें “भारत के पाक” की संज्ञा देना भी बेमानी नहीं होगा। सत्ता सुख के लालच में इनके वोटर कार्ड से लेकर राशन कार्ड तक जैसी सभी सुविधाएं मुहैया करा दी गयी हैं। ये सभी असंवैधानिक घुसपैठी अब भारत गणराज्य के संवैधानिक नागरिक हैं।

कांग्रेस से हिन्दू शरणार्थियों के लिए किसी कदम की अपेक्षा तो बेमानी है। लेकिन भाजपा भी इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी पूर्ववर्ती सरकार की ही नकल करती दिख रही है। सभी विपक्षी दल भाजपा पर हिन्दुत्व का आरोप लगाते रहते हैं। ये कुछ हद तक सही भी है। भाजपा चाहकर भी इस आरोप से अपना दामन नहीं बचा सकती है। हालांकि, भाजपा जब भी सरकार में होती है तो उसे हिन्दूओं से कोई खास लगाव नहीं रहता है। जब सरकार में नहीं होती है, तब हिन्दुत्व के मुद्दे को जीवित कर लेती है। अदनान सामी की नागरिकता तथा हिन्दू शरणार्थियों की उपेक्षा से इस पहलू को आसानी से समझा जा सकता है।

क्या अदनान सामी को केवल इस लिए देश की नागरिकता का अधिकार है कि वो टीवी के चर्चित कलाकार हैं? अगर यही मानदंड है तो इसमें बदलाव की जरूरत है। एक तरफ हम घुसपैठ पर लगाम लगाने के दावे करते हैं, वहीं घुसपैठियों को सभी सुख-सुविधाएं तथा संवैधानिक अधिकार प्रदान कर उन्हें संरक्षण दे रहे हैं। अगर असंवैधानिक घुसपैठियों को संवैधानिक अधिकार मिल सकते हैं, तो उन्हें क्यों नहीं? जो इस देश की प्राचीन संस्कृति का हिस्सा हैं! सच यही है कि हिन्दू शरणार्थियों के पास भारत के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। वक्त आ गया है, सरकार को इस संवेदनशील मसले को गम्भीरता से लेना चाहिए। उन्हें भारतीय नागरिकता के साथ-साथ जीवन की मूलभूत एवं आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराये जाएं। ऐसा करके ही हम वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धान्त को जीवन्त रख कर दुनिया तक पहुँचा सकते हैं।

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