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भ्रष्टाचार से लड़ाई का दिखावा !

ekmulakat
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हेटेड इंडियन आँफ ईयर15 का खिताब जीतने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फिर सुर्खियों में हैं। दिल्ली में आड – इवन फार्मूले की सफलता  के उपलक्ष्य में एक समारोह के दौरान उन पर स्याही फेकनें की घटना इसकी तात्कालिक वजह है। वैसे,  केजरीवाल के संदर्भ में यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी उन पर स्याही,  थप्पड,  चप्पल और पोस्टरों आदि से हमले होते रहे हैं। ये पूर्व नियोजित हैं या नहीं,  इसका बेहतर जवाब तो केजरीवाल ही दे सकते हैं। ऐसा इसलिए,  क्योंकि इन सभी घटनाओं के आरोपी या तो आप के कार्यकर्ता थे या फिर बाद में पार्टी का हिस्सा बना लिए गए। साथ ही, आम आदमी पार्टी वर्ष 2015 में सबसे ज्यादा नफरत से देखी जाने वाली पार्टी बन चुकी है। ये कुछ ऐसे दाग हैं, जो आम आदमी पार्टी की सफलता के कीर्तिमानों के साथ ही जुड़े रहेंगे।

जब आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था, तो “भ्रष्टाचार मुक्त भारत” अभियान को नई दिशा मिली थी। युवा वर्ग ने इस अभियान और तत्पश्चात पार्टी गठन में खूब भागेदारी निभायी। दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिली अप्रत्याशित सफलता ने इस जूनुन को और हवा दी। ऐसा लगने लगा था कि देश अब एक नए बदलाव की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन बीतते वक्त के साथ – साथ ये आशाएं भी धूमिल होने लगीं। अन्य राजनीतिक दलों की तरह आम आदमी पार्टी की भी राजनीति का मुख्य मकसद अब सत्ता सुख ही हो गया है। आप के भ्रष्टाचार विरोधी होने के दावे केवल जनता को गुमराह करने के लिए ही हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार का केंद्र बिन्दु रही शीला दीक्षित के खिलाफ अब तक किसी कानूनी प्रक्रिया का न होना इसकी पुष्टि करता है। पिछले सप्ताह आम आदमी पार्टी की पंजाब रैली के दौरान भी अरविंद केजरीवाल कुछ उसी रूप में दिखे। उन्होनें ये वादा किया कि अगर उनकी पार्टी पंजाब में सरकार बनाती है, तो मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल सहित सभी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सीबीआई जाँच की जाएगी। सीबीआई को लेकर वो खूद दो राय रखते हैं।

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते-लड़ते आम आदमी पार्टी अब देश की उसी राजनीतिक दलदल में फंस गई है, जो बहुसंख्यक विरोध को अपना मुख्य और एकमात्र लक्ष्य मानते हैं। शाहरूख, आमिर आदि के अनावश्यक बयानों के समर्थन से लेकर दादरी प्रकरण जैसे अनेक संवेदनशील मुद्दों के द्वारा इसको समझा जा सकता है। जबकि सरकार में होने के बावजूद दिल्ली में अब तक न ही किसी बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया गया है और न हीं किसी बड़े भ्रष्टचारी के खिलाफ किसी तरह की कानूनी प्रक्रिया का कोई मामला सामने आया है। हालांकि, प्रेस, मीडिया, विज्ञापनों तथा अन्य तरीकों से अपने विरोधियों को बदनाम करने की सभी रिवाजें अब भी बदस्तूर जारी हैं। केजरीवाल की मानें तो आम आदमी पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं तथा उनके करीबियों के अतिरिक्त संपूर्ण भारतवर्ष के लोग भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं। इनके अलावा भारत में शायद ही ऐसा कोई होगा, जिसे केजरीवाल ईमानदार का तमगा देना पसंद करें। सबसे ज्यादा हैरानी तो तब हुई, जब दिल को झकझोर देने वाली निर्भया कांड के मुख्य आरोपी की रिहाई के बाद उसे दस हजार रुपये तथा एक सिलाई मशीन का तोहफा दिया गया। जिस घटना ने देश को मार्मिक रूप से हिला कर रख दिया था, उसके गुनहगार से इतनी हमदर्दी क्यों? इसी तरह पठानकोट हमले में केवल पंजाब के दो शहीदों को मुआवजे देना सवालिया घेरे में है। शहादत पर राजनीति पुरानी बात हो गई है, लेकिन मुआवजे पर भी इतने घटिया स्तर की राजनीति तो शायद उन दलों से भी अपेक्षित नहीं है जो राजनीतिक स्तर के निचले पायदान पर हैं। “आप” से ये सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि पठानकोट में अन्य राज्यों के शहीदों के साथ ये भेद-भाव क्यों?

शायद भ्रष्टाचार मुक्त भारत के अपने मूल सिद्धान्त से भटकने के कारण ही आम आदमी पार्टी को अंदरूनी कलह से गुजरना पड़ रहा है। पार्टी के गठन में मुख्य भूमिका निभाने वाले अधिकांश सदस्य अब पार्टी का हिस्सा नहीं हैं। इससे ज्यादा विडंबना और क्या हो सकती है कि आम आदमी पार्टी, उसके नेताओं व कार्यकर्ताओं को यह सिद्ध करने में कि वो अब भी भारत के “आम आदमी” हैं, विधानसभा में करोड़ों के बजट का बिल पारित करना पड़ा है। विधायकों का वेतन दो लाख रुपये प्रति माह से ज्यादा कर दिया गया है। जिस देश ने स्व. लाल बहादुर शास्त्री, डा. राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य विनोबा भावे जैसे अनेक आम भारतीयों को जिया है, जाना है, पहचाना है, उस देश में अपने आम आदमी होने का ढिंढोरा पीटना किसी गलती को छिपाने का ही प्रयास हो सकता है। ज्यादा दुख तो तब होता है, जब डा. कुमार विश्वास सरीखे देश-प्रेमी हर गलत घटना के बाद या तो चुप रहना पसन्द करते हैं, या पार्टी के बचाव में उतर आते हैं।

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