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सीबीआइ की फारेंसिक लैब की रिपोर्ट ने इस सत्य की कलई खोल दी है कि 9 फरवरी की रात जेएनयू में अफजल गुरू की फाँसी की बरसी के कार्यक्रम में पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टुकड़े होंगे, ईंशाअल्लाह, ईंशाअल्लाह जैसे देश विरोधी नारे लगाए गए थे, जिसने एक आम भारतीय की भावनाओं को झकझोर दिया था। हालांकि, राहुल गांधी व केजरीवाल सरीखे तमाम छद्म सेक्युलर राजनेताओं को इन नारों में कहीं भी कुछ भी राष्ट्रविरोधी नजर नहीं आया था। इन सभी का यह मानना था कि सरकार अपने विरोध में उठ रही हर आवाज को दबाना चाह रही है, इसीलिए इस तरह के षड़यंत्र रच रही है। अगर इन सभी की मानें तो उस दिन जेएनयू में इस तरह की कोई घटना हुई ही नहीं थी। यहाँ तक कि पुलिस द्वारा की गई कार्यवाई भी सरकार की दमनकारी नीति का हिस्सा मानी गई।
एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल बार – बार यह कहता रहा कि उसके द्वारा जेएनयू घटनाक्रम पर प्रसारित वीडियो पूर्णतः सही है। देशद्रोह से जुड़े उस घटना की वीड़ियो से कोई छेड़ – छाड़ नहीं की गई है, लेकिन देश के एक वर्ग ने कभी भी उस साक्ष्य को प्रामाणिक नहीं माना और उसे एक सिरे से खारिज करते रहे। अब सीबीआइ की फारेंसिक लैब ने उस न्यूज चैनल के दावे को सही ठहराया है और उक्त साक्ष्यों में किसी प्रकार की एडिटिंग से इन्कार किया है।
उस न्यूज चैनल के दावे को केवल इसलिए नकार दिया गया क्योंकि वह गुजरात – गोधरा, कश्मीरी पंडितों और ऐसे अनेक राष्ट्रीय मुद्दों पर निष्पक्ष और बेबाक टिप्पणी करने लगा है। शायद इसीलिए देश का एक खेमा यह मानता है कि उस न्यूज चैनल पर प्रसारित होने वाली खबरों को प्रामाणिक नहीं माना जा सकता है। अगर इस विचारधारा के मानने वालों को समझा जाए तो कोई भारतीय तभी तक सेक्युलर है, जब तक वह हिंदुत्व या हिंदूओं के विरूद्ध वक्तव्य देता रहे, कार्य करता रहे या ऐसा करने के लिए किसी अन्य को प्रेरित करता रहे।
जब देश की राजधानी में स्थित जेएनयू कैंपस में देश विरोधी नारे लगाये जा रहे थे, तब एकमात्र उसी न्यूज चैनल का कैमरामैन और संवाददाता वहाँ मौजूद थे। फिर भी उनके द्वारा प्रसारित वीड़ियो की सत्यता पर सवालिया निशान लगा दिया गया। संसद भी इसकी गुंज से अछूता नहीं रहा और संसद में उन साक्ष्यों की प्रामाणिकता पर खुब बहस हुई। सारी हदें तो तब पार हो गयीं जब विरोधी मीड़िया खेमे ने जेएनयू कांड के मुख्य आरोपी व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को रातों – रात स्टार बना दिया। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार समेत कई बड़े नेताओं को कन्हैया कुमार में देश की भावी राजनीतिक पीढ़ी नजर आई। सुरेश रैना जैसे तमाम बड़े खिलाड़ी भी कन्हैया कुमार का गुणगान करने लगे।
देश की राजनीति में लगभग मृतप्राय हो चुके वामपंथ को तो जैसे संजीवनी मिल गई हो। जेएनयू देशद्रोह के सभी आरोपियों को वामपंथ की अगली पीढ़ी का खेवनहार माना जाने लगा। सभी विपक्षी राजनीतिक दलों को कन्हैया कुमार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने की क्षमता दिखने लगी। यहाँ तक की उसी खेमे के मीड़िया की उपज मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की चमक भी एक समय कन्हैया कुमार के सामने फीकी पड़ने लगी।
अब जबकि यह प्रमाणित हो गया है कि उक्त वीड़ियो पूर्णतः सही है, यह देखना दिलचस्प होगा कि देश के राजनीतिज्ञ इस संवेदनशीन मुद्दे को कितनी गंभीरता से समझते हैं? सभी विपक्षी दलों सहित सरकार का रूख भी देश में फैल रही इस तरह की देशविरोधी गतिविधियों का निर्णय करेगी।
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