Menu
blogid : 23308 postid : 1191390

खामोशी के मायने!

ekmulakat
ekmulakat
  • 11 Posts
  • 9 Comments

मथुरा लैब की फारेंसिक रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अखलाक के घर में मिला मांस गोवंश का ही है। इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद से ही अखलाक की मौत को विश्वव्यापी बनाने वाले समूह को जैसे लकवा मार गया है। कहीं से भी किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही है। ड़ी.जी.पी. ने यह कह कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है कि कानून अपना काम करेगा। उनका यह बयान अनेक सवाल पैदा करता है। आखिर वो किस कानून की बात कर रहें है? तात्कालिक प्रशासन ने ग्रामीणों के चीख – पुकार कर यह कहने को भी अनसुना कर दिया था कि उसके घर से मिला मांस गोवंश का ही है। प्राथमिक फोरेसिंक लैब ने भी अपनी रिपोर्ट में यह झूठ कहा था कि वह मांस गोवंश का नहीं है। क्या यह कानूनन सही है? किन्हीं भी परिस्थितियों में अखलाक की हत्या को जायज या विधि सम्मत नहीं कहा जा सकता है, लेकिन क्या अखलाक द्वारा गोवंश की हत्या को सही ठहराया जा सकता है? क्या बिना किसी आधार के हिंदुत्व और हिंदूओं के सम्मान को ठेस पंहुचाना कानूनन उचित है? क्या राज्य सरकार सहित उन सभी राजनीतिक दलों की चुप्पी जो इस मौत के समय विलाप कर रहे थे, देश व समाज के हित में है? सवाल कई हैं।

28 सितम्बर 2015 की रात पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दादरी स्थित बिसाहेड़ा गाँव में अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति अखलाक की आक्रोशित भीड़ द्वारा पीट – पीट कर हत्या कर दी गयी और देखते ही देखते यह आइएसआइएस से भी बड़ा मुद्दा बन गया। मीडिया की एक टोली, जिसका एकमात्र उद्देश्य हिन्दुत्व और हिंदूओं को नीचा दिखाना है, ने बखूबी अपने काम को अंजाम दिया तथा इस हत्या को धर्म युद्ध के रूप में प्रसारित कर दिया। रही सही कसर कमजोर, अपरिपक्व व तुष्टीकरण की राजनीति ने पूरी कर दी। अखलाक के परिजनों को सांत्वना देने वालों की लाइन लग गई। न ही मीडिया की उस टोली ने और न ही सत्तालोलुप राजनीतिज्ञों ने यह जानने की कोशिश की आखिर बिसाहेड़ा घटनाक्रम की सच्चाई क्या है। आनन फानन में हिंदूओं को हिंसक और धर्म से विचलित प्रमाणित कर दिया गया।

बहुसंख्यक जनता को देश व इस्लाम विरोधी बताना कुछ मीडिया घरानों व राजनीतिक दलों का मुख्य एजेंडा है। सत्ता सुख के लालच में राजनीतिक दलों का स्तर इतना गिर गया है कि आंतकी इशरत जहां को बेटी और संसद हमले के मुख्य दोषी अफजल गुरू को आदर्श बनाने की होड़ मची हुई है। इशरत जहां को तो आतंकी से आम भारतीय साबित करने के लिए तत्कालिन सरकार के एक प्रमुख मंत्री को अथक परिश्रम करना पड़ा था। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि तुष्टीकरण की राजनीति अपने चरमोत्कर्ष पर है। शायद इसीलिए मालदा और कर्नाटक में होने वाली घटनाओं पर न ही इन्हें कुछ दिखायी देता है, न ही कुछ सुनाई देता है। कुछ कथित बुद्धिजीवी भी इस घटना से इतने आहत हुए कि इसके विरोध स्वरुप उन्होंने अपने – अपने सम्मान वापस करने की परम्परा ही आरम्भ कर दी। कई फिल्मी हस्तियों को तो देश का वातावरण इतना असहिष्णु लगा था कि वो विदेशों तक में बसने के बारे में विचार करने लगे थे। इन सभी ने मिलकर यह फैसला भी कर लिया था कि फ्रिज में मिला मांस गोवंश का नहीं था और अखलाक की हत्या हिंदू आतंकियों ने प्रायोजित तरीके से की थी।

स्थानीय प्रशासन और प्राथमिक फोरेसिंक लैब ने भी यह प्रमाणित करने में देर नहीं लगाई की वह गोवंश का मांस नहीं था। फिर बारी आई अल्पसंख्यकों की रहनुमा प्रदेश सरकार की। मुख्यमंत्री ने अखलाक के परिजनों को 45 लाख रुपये देने की घोषणा की और मुलाकात के लिए उन्हें फ्लाइट से लखनऊ बुलाया। परिवार के सदस्यों को अन्य अनेक प्रकार की सुविधाँए मुहैया कराने का ऐलान किया गया।

गौ हत्या और उस पर वाद – विवाद कोई नई बात नहीं है। ऐसा तब है जबकि गौ-हत्या लगभग सभी प्रदेशों में प्रतिबंधित है। यह कानूनन जुर्म है, और इसके लिए बाकायदे सजा का प्रावधान है। फिर भी देश में गौ-तस्करी का एक बहुत बड़ा जाल फैला हुया है। ऐसे लोगों को राजनीतिक व प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है। अगर कानून का सही ढंग से पालन किया गया होता तो न ही गौ-हत्या होती और न ही इस तरह की वीभत्स घटना घटती। इसके आसार कम ही हैं कि उन सभी को कभी सजा मिल पायेगी जो एक दुखद घटना को दुनिया के कोने – कोने में पहुंचाकर देश व भारतीय समाज की गलत तस्वीर पेश करते रहते हैं।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh