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अस्मिता से खिलवाड़

ekmulakat
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18 सितंबर, 2016 की जल्दी सुबह जब सारा देश चैन की नींद सो रहा था, ठीक उसी समय जम्मू-कश्मीर के उरी में हुए एक फिदायीन हमले ने देश की सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए 17 जवानों को मौत की नींद सुला दिया। 19 जवान गंभीर रूप से घायल हुए, जिनमें से इलाज के दौरान एक और जवान शहीद हो गया। यह पहला आतंकी हमला नहीं है, जिसने भारतीय गरिमा को तार-तार किया हो। साल की शुरूआत में ही जनवरी, 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हमला हुआ था। उसके कुछ दिन पहले गुरदासपुर, उसके पूर्व मुंबई और संसद आदि पर। 90 के दशक से ही भारत में लगातार आतंकी हमले होते रहे हैं। देश को इनकी आदत सी हो गई है। हर घटना के  बाद हुक्कमरानों के रटे-रटाए वक्तव्य भी सुनाई देते हैं। एक आतंकवाद है, जो अपनी रफ्तार बढ़ाता जा रहा है। एक हम हैं, जो जवाबदेही के नाम पर कुछ लिखे-पढ़े अल्फाजों को वयां कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। हर आतंकी वारदात के बाद हम साक्ष्यों की पोटली जुटाने में जुट जाते हैं। इसमें सफल हो भी जाते हैं।

वक्त- वक्त पर भारत हर आतंकी वारदात के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने के पुख्ता सबूत देता रहा है। पूरा विश्व आतंकवात की विभीषिका से जल रहा है। अनेक आतंकी संगठन संपूर्ण संसार में आतंक की दहशत फैला रहे हैं। इन सबके बीच एक बात जग-जाहिर है कि पाकिस्तान दुनिया के सभी दहशतगर्दों को संरक्षण देता है, उनका पालन-पोषण करता है और अपनी जरूरत के हिसाब से उनका उपयोग करता है। 09/11 अमेरिकी आतंकी हमले के मास्टर मांइड और दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी ओसामा-बिन-लादेन को वाशिंगटन ने पाकिस्तान में ही मार गिराया था। मुंबई हमले में एकमात्र जिंदा पकड़ा गया आतंकी अजमल आमिर कसाब भी पाकिस्तान का ही रहने वाला था। ऐसे हजारों उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा हैं। भारत में हुए हर आतंकी वारदात के बाद यह साबित हो चुका है कि ये सभी पाक प्रायोजित थे। यहां तक कि बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हुए हमलों में भी पाकिस्तान के  हाथ होने के सबूत मिले हैं। खुद पाकिस्तान इन दहशतगर्दों के नापाक मंसूबों से नहीं बच पा रहा है। शायद ही ऐसा कोई सप्ताह हो, जब पाकिस्तान में कोई नापाक घटना न घटती हो।

इन सबके अपने मायने हैं। दुनियाजोभीमाने, एकआमभारतीयनागरिकयहबखूबीजानताहैकिपाकिस्तानसुधरनेवालानहींहै।सुधारकीगुंजाइशतबहोतीहै, जबगलतीकाएहसासहो।हालातयेहैंकिपड़ोसीदेशहरबारहमेंहीआंखेदिखानेलगताहै। भारत हर बार झुक भी जाता है। समय बीतता जाता है और हमारे तेवर भी ढीले पड़ने लगते हैं। जैसे ही पिछले जख्म पर समय की एक परत चढ़ती हैं, पाक एक नया घाव देकर फिर उन सभी जख्मों को कुरेद देता है। समय आ गया है, जब भारत पाकिस्तान से अपने पड़ोसी होने के सभी जिम्मेदारियों का त्याग करे। एक अच्छे पड़ोसी के नाते ही हमने शिमला और ताशकंद जैसे एकतरफा समझौते किए थे। सिंधु नदी जल समझौते के तहत मिलने वाला पानी पाकिस्तान को जीवन देता है। इन समझौतों में भारत ने भू-भाग तो खोया ही, ताशकंद ने तो हमारे तत्कालिन प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जैसे अनमोल रत्न को छीन लिया।

वक्त की मांग हैं कि नई दिल्ली अपनी नीतियों में बदलाव लाए। देश व सीमाओं की सुरक्षा, जवानों व देशवासियों का सुरक्षित जीवन सरकार की जिम्मेदारी है। इनसे किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करने, उसे आतंकवादी राष्ट्र घोषित करवाने जैसीं तमाम पहल स्वागत योग्य हैं। लेकिन, इसकी शुरूआत नई दिल्ली को खुद ही करनी होगी। समझौते की सारी हदें पार हो गई हैं। अब पाकिस्तान से सभी प्रकार के राजनीतिक, कूटनीतिक, व्यावसायिक व अन्य सभी संबंध खत्म करने की दरकार है। सभी गलतियों को ढूंढ़ कर उनमें सुधार अति-आवश्यक हो गया है। ऐसा करके ही हम दुनिया को अपनी मजबूत इच्छाशक्ति से अवगत करा सकते हैं। अब पारम्परिक तरीकों से हट कर कुछ करने की घड़ी है। जब तक हम खुद प्रभावी नहीं होंगे, दुनिया से किसी मदद की उम्मीद बेमानी है। हर तरफ से अलग – थलग कर ही पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सकता है।

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